The Womb
Home » Blog » Poems » क्या अब भी मानव बदलेगा?
Poems

क्या अब भी मानव बदलेगा?

कभी सिसकती बालाओं की, 

सुध लेती थी जनता सारी,

आज चहकती अबलाओं की, 

चिता सजाने की तैयारी।।

कब तक ऐसी दशा रहेगी? 

कब तक तांडव क्रूर चलेगा? 

क्या अब भी मानव बदलेगा? 

सारे मानव मूल्य तिरोहित, 

मानवता की कत्ल हो रही, 

हर्षित दिखते लगभग सारे, 

हाहाकार चतुर्दिक पाकर, 

कैसा वज्र हृदय मानव अब 

हिंसक, पशुवत, ब्यभिचारी? 

कबतक ऐसी ब्यार बहेगी? 

कबतक झंझावात चलेगा? 

क्या अब भी मानव बदलेगा? 

परम्पराएं लुप्त हो रहीं, 

नव – जीवन शैली अपनाकर, 

चकाचौंध फ़ैशन की दुनिया, 

झूठ – मूठ जादू दिखलाकर, 

पिता – पुत्र, गुरु – शिष्य विखण्डित, 

भावशून्य, अब्यक्त, अपरिमित, 

कब तक रिश्ते बेजान रहेंगे? 

कब तक ऐसा ब्यवधान रहेगा? 

क्या अब भी मानव बदलेगा? 

बालेन्दु कुमार बम बम 

पी. जी. टी, अंग्रेजी डी.ए.वी कैंट एरिया, गया (बिहार)

Image Credit: Aaron Blanco Tejedo

Related posts

Marital Rape – Let’s Talk of it

Guest Author

A Woman

Guest Author

Untitled

Guest Author