The Womb
Home » Blog » Politics » हरियाणा में अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी की अनदेखी
Politics Sports

हरियाणा में अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी की अनदेखी

राजेश ओ.पी. सिंह

भारत के उत्तर में स्थित प्रदेश हरियाणा जो अपने देसी खानपान और खेलकूद के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, 2004-2005 से लगातार प्रदेश के खिलाड़ियों ने प्रत्येक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन किया है और भारत के लिए पदक जीते हैं।

2005 से 2014 तक प्रदेश में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और इस सरकार द्वारा प्रोत्साहन स्वरूप राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं से लेकर अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में पदक जीतने वाले हरियाणा के खिलाड़ियों को न केवल धनराशि दी जाती थी बल्कि सरकारी नौकरी और बढ़िया विश्वस्तरीय ट्रेनिंग की भी व्यवस्था की जाती थी। कांग्रेस सरकार की साफ नीयत और नीति से ही 2008 के बीजींग ओलंपिक में भारत को मिले कुल 3 पदकों में से दो हरियाणा के खिलाड़ियों ने जीते, इसके बाद 2012 के लंदन ओलंपिक में भारत की पदक तालिका को 6 पदकों तक पहुंचाया, जिसमे से तीन मेडल हरियाणा के खिलाडियों ने जीते ,परन्तु प्रदेश की मौजूदा भाजपा सरकार ओलंपिक 2016 में ये सिलसिला में बना कर नहीं रख पाई और प्रदेश की केवल एक खिलाड़ी ही पदक जीतने में सफल हुई।

अभी हाल ही में रोहतक जिले में पड़ने वाले गांव
सिसर खास जहां से भारोत्तोलन की एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी सुनीता देवी का मामला सामने आया है, जिन्होंने राज्य स्तर पर कई बार गोल्ड मेडल जीते है, फरवरी 2019 में राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीता वहीं फरवरी 2020 में यूरोपियन वर्ल्ड चैमपियनशिप जो कि थाईलैंड के बैंकॉक में संपन्न हुई थी में भी गोल्ड पदक जीत कर भारत का नाम रोशन किया I परंतु उनकी मौजूदा हालात प्रदेश और केंद्र में भाजपा सरकार की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, जैसी अनेकों योजनाओं की पोल खोल रही है I अपने छोटे से जीवन में इतने मेडल जीतने वाली अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी सुनीता के साथ प्रदेश सरकार भेदभाव कर रही है I उनके पास ना तो ट्रेनिंग के लिए पैसे है ना ही अच्छे खाने (डाइट) के लिए पैसे है I

जब वो युरोपीयन वर्ल्ड चैंपियनशिप खेलने गई तो इसका खर्च उठाने के लिए इनके घर वालों ने ब्याज पर कर्ज लिया I इन्हे उम्मीद थी कि इतनी बड़ी खेल प्रतियोगिता में मेडल जीतने के बाद घर की स्थिति में सुधार आएगा और वो आगे अपने ओलंपिक के सपने के लिए ट्रेंनिंग कर पाएगी I परंतु जब ऐसा नहीं हुआ, वो तब भी जोहड़ किनारे टूटे फूटे मकान में रहते थे जिसमे एक ही कमरे में रसोई है, वहीं सोने की व्यवस्था है और आज भी उसी में रह रहें है।

परिवार ने सुनीता को यूरोपियन वर्ल्ड चैंपियनशिप में भेजने के लिए जो कर्ज लिया था उसे चुकाने के लिए अब सुनीता समेत पूरा परिवार दिहाड़ी करता है I एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी सुनीता को जब अपनी ट्रेनिंग करनी चाहिए तब वो लोगों के घरों में बर्तन साफ करती है I जब सुनीता को बढ़िया डाइट लेनी चाहिए तब उसे लोगों की शादियों में रोटी बनाने का काम करना पड़ता है I जब सुनीता को अपने खेल में सुधार के लिए कौशल सीखना चाहिए तब उसे घर के कार्य करने पड़ते है।

सुनीता, जो की पास के ही सरकारी कॉलेज में बी.ए. द्वितीय वर्ष में पढ़ाई करती है, को अपने कॉलेज की तरफ से भी वो मान सम्मान और सहयोग नहीं मिला जो एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को मिलना चाहिए I अब प्रश्न ये है कि क्या सुनीता एक पुरुष होता तो भी उसके साथ ऐसा ही व्यवहार होता? शायद नहीं।

गांवों में सुनीता जैसी कई महिला खिलाड़ी हैं, जिन्हें सरकार की गलत नीयत और नीति का शिकार होना पड़ता है, यदि सरकार साफ नीयत और नीति से सुनीता जैसी विश्वस्तरीय खिलाड़ियों के लिए बढ़िया ट्रेनिंग और अच्छे खाने पीने की व्यवस्था करे तो ये महिला खिलाड़ी निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भारत का नाम रोशन करेंगी और हरियाणा को पदक तालिका में अव्वल रखेंगी।

हरियाणा प्रदेश में खेल मंत्री (संदीप सिंह, पूर्व भारतीय हॉकी कप्तान) जो खुद एक खिलाड़ी है उन्हे अच्छे से मालूम है कि एक खिलाड़ी किस स्तर पर किस प्रकार की मुसीबतों का सामना करता है और यदि किसी खिलाड़ी की आर्थिक स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब हो और खिलाड़ी महिला हो तो कैसी परिस्थितियों से उसे गुजरना पड़ता है,इस बारे में वो अच्छे से समझ सकते हैं I परंतु इस सबके बावजूद ना तो खेल मंत्रालय, ना ही प्रदेश सरकार और ना ही केंद्र सरकार द्वारा कुछ किया जा रहा है और ऐसे खिलाड़ियों का भविष्य अंधकार में धकेला जा रहा है।

सुनीता जैसी अनेकों महिला खिलाडियों की अनदेखी के पीछे सरकार की पितृसत्तात्मक सोच काम कर रही है और इस प्रकार की सोच को हावी होने से रोकने के लिए महिलाओं को एकजुट होना होगा I अपने हितों को ध्यान में रख कर मतदान करना होगा और राजनीति में प्रवेश करके नीति निर्माण में अपना स्थान सुनिश्चित करना होगा क्योंकि जब तक महिलाएं खुद मजबूत नहीं होएंगी और नीति निर्माता नहीं बनेंगी तब तक महिलाओं के साथ ऐसा भेदभाव होता रहेगा I इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि महिलाएं अपने अधिकारों के लिए जागरूक हों और एक शक्ति के रूप में सामने आए ताकि हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। जब तक ये नहीं होएगा तब तक पुरुष अपने हिसाब से महिलाओं के लिए नीतियां बनाते रहेंगे, अपने हिसाब से उनका संचालन करते रहेंगे और उनकी नीतियों से सुनीता जैसी अनेकों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का भविष्य बर्बाद होता रहेगा।

Related posts

लड़कियों के सपने तोड़ती नई शिक्षा नीति 2020

Rajesh Singh

पंजाब में महिलाओं का मतदान व्यवहार

Rajesh Singh

Supreme Court Directs Navy to Grant Permanent Commission for Serving Women

Saba Rajkotia