By राजेश ओ.पी. सिंह
कोई भी देश या समाज तब तक विकसित नहीं हो सकता जब तक उसके विकास में सभी नागरिकों का संपूर्ण योगदान न हो और हम भली भांति जानते हैं कि गैर यूरोपियन देशों में जानबूझकर महिलाओं को विकास की मुख्यधारा से दूर रखा गया है, जिसका परिणाम ये हुआ है कि अभी भी ये देश विकास के पैमाने पर पिछड़े हुए हैं। बात यदि हम भारत की करें तो यहां भी हमेशा महिलाओं को विकास कार्यों से दूर रखने का प्रयास किया गया है हालांकि सरकार द्वारा कभी कभार आधी आबादी को मुख्यधारा में लाने की योजनाएं तो बना ली जाती है परंतु आज तक कोई भी सरकार उन्हें लागू करवा पाने में सफल नहीं हो पाई है।
हमारे देश की विडंबना ये है कि यहां नीतियों का निर्माण और उन्हें लागू करने की जिम्मेदारी अकेले पुरुष समाज पर है I पुरुष ही महिलाओं के लिए योजना बनाते हैं और वो ही उन्हें लागू करते है इसी कारण से ये योजनाएं असफल हो जाती हैं परंतु अब समय आ गया है कि महिलाओं को कम से कम खुद के लिए तो नीति निर्माण में नेतृत्व प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वो अपने विकास और हित के लिए योजनाएं बना कर उन्हें लागू कर सके।
भारत में महिलाओं को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए मुख्य रूप से दो संस्थागत परिवर्तन हुए हैं। पहला “जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट” और दूसरा अलग से “महिला एवं बाल विकास मंत्रालय” का गठन करना।
सबसे पहले बात यदि हम “जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट” की करें तो यह महिलाओं को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए एक सशक्त उपकरण के रूप में शुरू किया गया है। विश्व के कई देशों में यह 1980- 90 के दशक में शुरू हुआ परंतु भारत में इसकी शुरुआत 2005 के बजट से हुई। “जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट का मुख्य उद्देश्य है कि नीति निर्माण और संसाधनों का आवंटन इस प्रकार किया जाए जिससे महिलाओं को भी विकास का लाभ पुरुषों के समान मिल सके।” भारत में जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट दो भागों में जारी होता है, पहले भाग में उन योजनाओं को शामिल किया गया है जो “महिला विशिष्ट योजनाएं” (Women Specific Scheme) हैं और इन योजनाओं का सारा अनुदान केवल महिलाओं के विकास में खर्च होता है जैसे उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना आदि। वहीं दूसरे भाग में “महिला केंद्रित योजनाओं” (Pro Women Schemes) को शामिल किया जाता है और ऐसी योजनाओं का कम से कम 30 प्रतिशत अनुदान महिलाओं के लिए खर्च किया जाता है, जैसे पीएम मुद्रा योजना, पीएम आवास योजना आदि।
भारत में जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट के बावजूद महिलाएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं क्योंकि भारत में इसे सही ढंग से अपनाया ही नही गया, जैसे कि सबसे बड़ी कमी तो ये है कि हमारे यहां जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट में कुल बजट का केवल 4 से 5 फीसदी ही खर्च किया जाता है जो कि आधी आबादी के लिहाज से बहुत कम है। दूसरा हमारे देश में कोई स्वतंत्र फिस्कल काउंसिल नहीं है जो इसका स्वतंत्र रूप से विश्लेषण कर सके और सरकार पर दबाव बना कर इसे बढ़ा सके। तीसरा जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट के कुल अनुदान का केवल 25 से 30 फीसदी हिस्सा ही महिला विशिष्ट योजनाओं के लिए आवंटित किया जाता है बाकी 70 से 75 फीसदी हिस्सा महिला केंद्रित योजनाओं पर खर्च किया जाता है।
इसके अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय बनने से भी महिलाओं को प्राथमिकता नहीं मिल रही है और न ही इससे उनके जीवन में कोई सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले हैं। अच्छे नीति निर्माताओं और फंड के अभाव में इस मंत्रालय का भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण पर कोई प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा।
एक समय था जब केवल कॉस्मेटिक पदार्थों पर कितना टैक्स कम हुआ है को ही महिला बजट का मुख्य भाग मान लिया जाता था, परंतु अब रसोई के समान से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी योजनाओं और रोजगार में भी महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की मांग हो रही है।
जैसे यदि हम बात महिलाओं के रोजगार की करें तो इस बजट में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला है। पीरियोडिक लेबर फोर्स के (2022-2023) सर्वे अनुसार आंकड़े बताते हैं कि भारतीय लेबर फोर्स में 15 वर्ष और इस से अधिक आयु वर्ग की केवल 37 प्रतिशत लड़कियां ही कार्यरत है वहीं इसी आयु वर्ग के लड़को की यह संख्या 78.5 प्रतिशत के आसपास है। अर्थात युवा लड़कियों को रोजगार में तरजीह नहीं मिल रही है और ये एक तथ्य है कि एक महिला के लिए आत्मसम्मान से जिंदगी जीने के लिए आर्थिक स्वतंत्रता सबसे ज्यादा आवश्यक है। जब तक महिलाओं को रोजगार में उनकी संख्या अनुसार प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा तब तक शायद वो पिछड़ी रहेंगी।
महिलाओं की प्रत्येक क्षेत्र में भागीदारी सुनिश्चित हो इसके लिए सरकार को तेजी से कदम उठाने की आवश्यकता है और शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से महिलाओं के कौशल को बढ़ा कर कार्यक्षेत्र में इनका संपूर्ण योगदान लिया जा सकता है इसके साथ ही सरकार और वित्त मंत्रालय को यह समझना होगा कि महिलाओं को विकास की मुख्यधारा में शामिल किए बिना “विकसित भारत” का सपना पूरा नहीं किया जा सकता।