The Womb
Home » Blog » Opinion » क्रांति का आगाज़ ईरान की आज़ाद यूनिवर्सिटी से
Opinion

क्रांति का आगाज़ ईरान की आज़ाद यूनिवर्सिटी से

By परेश नागर

My country – I will build you again, if need be, with bricks made from my life.
I will built columns to support your roof.

यह कुछ लाइन है ईरान की मशहूर लेखिका सिमिन
बेहबहानी की, जो अपने देश को फिर से बनाने की बात करती है।

पर क्या देश बन रहा है?
1979 से पहले ईरान की स्थिति आज के ईरान जैसी नही थी I महिलाओं की अभिव्यक्ति एवं उनके पहनावें की आज़ादी महिलाओं के हाथ में थी I
लेकिन धीरे धीरे यह आज़ादी कैद में तब्दील होती गई,
और एक तानाशाही सरकार ने महिलाओं को पिंजरे में कैद करने जैसे शरिया कानून ईरान में लागू किए I इसलिए 1979 के बाद ईरान में महिलाओं को लेकर काफी सख़्त कानून बनाएं गए, जिसमें हिजाब को लेकर काफी सख़्ती अपनाई गई।

सख़्ती इतनी की हिजाब से माथे के बाल भी नज़र आ जाएं तो कोड़े मारने की सज़ा मिल जाती है।

इस तरह के सख़्त कानून के ख़िलाफ़ महिलाओं ने सड़को से लेकर सोशल मीडिया तक प्रदर्शन किए।

2014 में हिजाब के खिलाफ विरोध के लिए माय स्टील्थी फ्रीडम नाम का एक फेसबुक पेज बनाया गया I

इस पेज के जरिये महिलाएं एकत्रित हुए और उन्होंने अपनी आवाज़ को “मेरी गुम आवाज़ नाम दिया” “हिजाब में पुरुष” “कैमरा मेरा हथियार” जैसी पहल का आगाज़ हुआ।

फिर 2017 में सफ़ेद ‘बुधवार अभियान’ चलाया गया जिसमें महिलाएं सफेद कपड़े पहनकर हिजाब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करती है।

वही विरोध का रास्ता ईरान की आज़ाद यूनिवर्सिटी में बनी, एक लड़की ने इनरवियर में हिजाब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। वहाँ की पुलिस ने लड़की की मानसिक स्तिथि ठीक नही है का हवाला देकर हिरासत में ले लिया।

किसी भी मुल्क की आज़ादी इस बात पर निर्भर करती है कि वहाँ की महिलाओं की स्थिति क्या है।

आज़ाद विचारों के साथ महिलाओं के हितों के लिए लड़ना आज के दौर में भी आसान नही है।

हर एक वो मुल्क जहाँ सत्ता खुद को जनता से ऊपर समझने लगती हैं तब उस मुल्क में तानाशाही पनपने लगती है।
एक लड़की अपने जीने की परवाह किये बगैरह एक तानाशाही सरकार से लड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं,
और यह लड़ाई उसकी आज़ादी की बस नही है यह लड़ाई ईरान की उन समस्त महिलाओं की है जो चुप है बोल नही पा रही है I

उनकी चुप्पी को ललकार बनाने का काम इस अकेली लड़की ने किया है I

उसको नही है डर की क्या होगा, क्योंकि उसको यह मालूम है की मेरा आज का यह विरोध ईरान की समस्त महिलाओं की जिंदगी में आज़ादी की रोशनी का पैगाम लेकर आएगा।

बस ईरान नही किसी भी मुल्क में जहाँ एक ऐसा समाज निर्मित है जिसके चलते महिलाएं आज भी खुद से यदि यह तय नही कर पा रही है कि क्या पहनना है तो यह सम्पूर्ण समाज पर लानत हैं।

जब अंतिम लौ भी आसमान की
बुझने को हो जायेगी
जब तिमिर करेगा अट्टहास,
और आशाएं मर जायेंगी

जब हृदय नाद में डर होगा
रूंधा, कांपता स्वर होगा
उस समय उजाला करने को वो अपना बदन जलाएगी
एक स्त्री ही राह दिखाएगी
एक स्त्री राह दिखाएगी I

Related posts

Kaali Kaali Aankhein

Guest Author

Eating Last: Gendered Malnutrition in India

Guest Author

There Are Communists in the Funhouse, Aunt Flo Has Entered the Chat and, Nations Across the World have been Swept by the Crimson Tide

Pragya Jain